शाम जाया कर दी
शाम जाया कर दी
इक शाम और जाया कर दी
हमेशा की तरह
देखकर यूँ ही चंद तमाशे
और झूठी तालियों के दरमियाँ।
तमाम बनावटी चेहरे
भागती हुई ज़िन्दगी की रेस से
चंद ठिठके हुए क़दम !
लाख कोशिश की मैंने
बहल जाये ये कमबख्त दिल
दिल भी क्या
जो जिद पे न अड़ा हो।
दिल जिद पे अड़ा रहा
मैं ग़म के साथ खड़ा रहा
अकुला भागा उस भीड़
और बेसुरी आवाज़ों से।
भारी मन था
भारी ही रह गया
और मैंने फिर
इक शाम जाया कर दी !