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Shahid Ajnabi

Tragedy

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Shahid Ajnabi

Tragedy

ज़िन्दगी का साथ

ज़िन्दगी का साथ

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इसी मोड़ पे लहराता हाथ छोड़ आया था

हाथ क्या, यूं समझो ज़िन्दगी का साथ छोड़ आया था।


शक्लें आँसुओं में मुहब्बत की विरासत दे गयी

वरना कब का मैं वो शहर छोड़ आया था।


अहदे वफ़ा, रंगे मुहब्बत सब छूट गए

इक दिल था शायद वही छोड़ आया था।


ये साँसों का सफ़र है जो दिन-ब- दिन चल रहा है

वरना खुद को तो कब का वहीं छोड़ आया था।


बेवजह ढूंढती हैं नज़रें उन आँखों की नमी को

जिसे उसी दिन मैं खुदा के हवाले छोड़ आया था।


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