STORYMIRROR

Shahid Ajnabi

Abstract

4  

Shahid Ajnabi

Abstract

तंगहाली की वो आइस क्रीम

तंगहाली की वो आइस क्रीम

1 min
484

तंगहाली की वो आइसक्रीम

चन्द रुपयों के वो तरबूज

किसी गली के नुक्कड़ की वो चाट

सुबह- सुबह

पूड़ी और जलेबी की तेरी

फरमाइश मुझे आज भी याद है

कैसे भूल जाऊं

अम्मी से पहली मुलाकात

और मेरी इज्ज़त रखने के लिए

पहले से खरीदा गया तोहफा मेरे हाथों में थमाना

ये कहते हुए किअम्मी को दे देना कैसे भूल जाऊं

वो नेकियों वाली

शबे बरात कि अजीमुश्शान रात कहते हैं

हर दुआ क़ुबूल होती है उस रात

मुहब्बत से मामूर दिल

और बारगाहे इलाही में उट्ठे हुए हाथ

हिफाजते मुहब्बत के लिए कैसे भूल जाऊं

कैसे भूल जाऊंवो पाक माहे

रमज़ानसुबह सादिक का वक़्त

खुद के वक़्त की परवाह किये बगैर

सहरी के लिए मुझको जगाना

दिन भर के इंतज़ार के बाद

वो मुबारक वक्ते अफ्तारी

हर रोज मिरे लिए कुछ मीठा भेजना

कैसे भूल जाऊं

मेरा वक़्त- बे- वक़्त डांटना

क्यूँ भेजा था तुमने

कल से मत भेजना

और वहां से-

वही मखमली आवाज़ में

रुंधे हुए गले का जवाब हो सकता है

ये आखिरी अफ्तारी हो

खा लो शाहिद

मेरे हाथों की बनी हुयी चीजें

जाने कब ये पराये हो जाएँ

कैसे भूल जाऊं...



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract