मेरी भारत माता
मेरी भारत माता
चंद्र चांदनी सी निर्मल, हो सुकुमार जैसे मखमल,
मुस्कान जैसे मोती, क्या इससे सुंदर कल्पना होगी।
निर्झर पहाड़ी सरिता सी, कोमल मेरी कविता सी,
चंचल बरखा सी, इससे अद्भुत क्या कल्पना होगी।
महकते फूलों की क्यारी सी, लगती है प्यारी सी,
छैल छबीली मतवाली, कहां ऐसी कल्पना होगी।
शिशिर की मृदु धूप सी, कोयल की मीठी कूक सी,
कर्णप्रिय, मोहक इससे उत्तम, कल्पना कहां होगी।
शांत हो सागर सी, शीतल जैसे मृदा की गागर सी,
इतनी मधुरम, स्वप्निल, मनमोही छवि किसकी होगी।
आकाश गंगा सी विस्तृत, सरल सहज जैसे संस्कृत,
गीता ज्ञान सी उन्नत, भारत मां की मेरी कल्पना होगी।