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Anita Choudhary

Drama

4.0  

Anita Choudhary

Drama

छुट्टियाँ

छुट्टियाँ

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दबे पाँव गुज़र चली सर्दी की छुट्टियां ,

बीती जो बच्चों के संग...

हँसते हुए खिलखिलाते हुए

खाते हुए खिलाते हुए बच्चों को

उनकी पसंद के पकवान...

माँ तिल के लड्डू बनाओ ना,

बड़े दाल के खिलाओ ना

गोंद के लड्डू बहुत भाते हैं

बाटी दाल पकाओ ना...

नानी मुझे उपमा खाना है,

मम्मा को समझाओ ना

सेंकना वो धूप का,

वो सुस्ताना देर तक

एक बार फिर जी लेती बचपन

अपना अबेर तक

अक्स पाती हूँ अपना,

अपने इन बच्चों में..

जो दिन भर करते हैं फरमाइशें,

और करते हैं जिद्द..

बहुत थक जाती हूँ

ढलती सांझ की तरह,

देख इनकी मुस्कान फिर

उर्जावान हो जाती हूँ

उदित भोर की तरह.....

बीती छुट्टियां...रीते फुर्सत के पल

पुनः आस लिए ये लम्हे लौटेंगे कल

फिर इन्हीं खूबसूरत लम्हों को

जीने की आस लिए.... "अनु"

लौट जाना है मुझे भी

मेरे कार्यस्थल पर......

लौट जाना है मुझे भी

मेरे कार्य स्थल पर.....


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