कितने उलझे मसले हैं, यह हजारों ख्वाहिशें! मानव की खुद के मन की हर दिन नई फ़रमाइशें कितने उलझे मसले हैं, यह हजारों ख्वाहिशें! मानव की खुद के मन की हर दिन नई फ़रमाइश...
ताकि लौट कर आने की गुंजाईश न हो। ताकि लौट कर आने की गुंजाईश न हो।
बहुत थक जाती हूँ ढलती सांझ की तरह, देख इनकी मुस्कान फिर उर्जावान हो जाती हूँ उदित भोर की तरह....... बहुत थक जाती हूँ ढलती सांझ की तरह, देख इनकी मुस्कान फिर उर्जावान हो जाती हूँ ...
तुम मेरे पास रहो बस यही ख्वाहिश है, तुम मेरे पास रहो बस यही ख्वाहिश है,