तन्हा
तन्हा
मैंने रातों को रोज़ पिघलते हुए देखा था,
अपनी पलकों पे नींद को जलते हुए देखा था,
चाँद भी टूटकर आसमां में बिखरा था कहीं,
और बादलों में छुपकर तारों को, रोते हुए देखा था,
ये सुकूं भी मेरा ऐसा बेरहम हो गया है,
आंखों से ख्वाबों को उड़ते हुए देखा था,
बेचैन आँधी को भी हमने किसी और गली,
ख़ामोशी से रास्ता बदलते हुए देखा था,
वो चिराग़ जो जलता था अक्सर सिरहाने,
अंधेरे को भी उसपर हँसते हुए देखा था,
उन पुरानी यादों में खोकर, बुत सा बन गया हूँ मैं,
तन्हाइयों को मुझपर, शिकंजा कसते हुए देखा था,
मौत आयी थी कफ़न लेकर, मुझको उढ़ाने,
वक़्त को मैंने अपनी बेबसी पे, मुस्कुराते हुए देखा था।