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ज़िन्दगी- एक सवाल

ज़िन्दगी- एक सवाल

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ये ज़िन्दगी,

एक अनसुलझा सवाल लगे,

कभी पहेली तो,

कभी एक बवाल लगे।


कभी अंजना-सा,

एक ख्याल लगे,

जानने की जितनी करो,

कोशिश उतनी अनजान लगे।


कभी बेरंग दीवार तो,

कभी रंगो का थाल लगे,

कभी गिरीश की धूप तो,

कभी बूंदो की बौछार लगे।


कभी भर जाये जीने की,

हर आरज़ू ऐसी आग लगे,

कभी रोशन कर दे हर आरज़ू,

को वो आफताब लगे।


'रहबर' छोड़ दी है कोशिश,

सुलझाने की इस सवाल को,

भरी है सवालों से ज़िदगी तभी,

ज़िंदा होने का एहसास लगे।


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