मुखौटा ही है पहचान
मुखौटा ही है पहचान
इस जग में बड़ी ही मुश्किल,
किसी की है सच्ची पहचान।
मुखौटों में ही हम उलझे रहते,
लगाते रहते हैं विविध अनुमान।
दस-बीस आदमी हैं हर एक आदमी में,
ढंग से समझने को दस-बीस बार देखो।
चलता न जग में काम विश्वास के बिना,
अति हो तो हो भी जाए विश्वासघात देखो।
रंग बदलने के फन में गिरगिट है बदनाम,
गिरगिट से भी तेज रंग बदलता है इंसान।
इस जग में बड़ी ही मुश्किल,
किसी की है सच्ची पहचान।
मुखौटों में ही हम उलझे रहते,
लगाते रहते हैं विविध अनुमान।
सादा और सरल-जीवन इस जग में,
तो अच्छी हैं सिद्धांत की पुस्तक में।
सीधा और सरल होना बिल्कुल ही,
अच्छा नहीं है अक्सर आप के हक में।
भाए न हमको जैसा कुदरत ने जो दिया,
धोखे या दिखावे हित मुखौटा है पहचान।
इस जग में बड़ी ही मुश्किल,
किसी की है सच्ची पहचान।
मुखौटों में ही हम उलझे रहते,
लगाते रहते हैं विविध अनुमान।
सचमुच ही यह सब धरा तो रंगमंच ही है,
लगाते अलग मुखौटा नाटक के हिसाब से।
व्यवहार-आचरण निभाता है हर एक जन ही,
सच्चाई हो रही है गायब जीवन की किताब से।
इंसान ही नहीं है धोखे में इंसान के मुखौटों से,
इंसान के मुखौटों से खाते हैं धोखा भी भगवान।
इस जग में बड़ी ही मुश्किल,
किसी की है सच्ची पहचान।
मुखौटों में ही हम उलझे रहते,
लगाते रहते हैं विविध अनुमान।