वो था
वो था
वो था
फूलों की भीनी खुशबू लिए
हवा का महीन झोंका
साँसों से लेकर भीतर
उसे रूह में बसाया
वो था
आखों में धधकती आग लिए
जिससे झिलमिला उठती मेरी आंखें
न थी यह जगत जलाने के लिए
थी यह उसे गर्माहट पहुँचाने
वो था
चहरे पर वसंत के सारे रंग लिए
हर बार एक नया रूप लिए
हर आते व्यक्ति में उसे तलाशती
धुंधली छवि साकार करना चाहती
मैं हूँ
साधारणता की चादर ओढ़े
उस सूर्य से आँखे फेरे
शायद मैं उसके योग्य नहीं
उसे यह दीपक नहीं, दूसरा सूर्य मिले !