STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

"नजरों से न गिर"

"नजरों से न गिर"

1 min
288

चाहे आसमां की ऊंचाई से गिर

किसी की नजरों से तू नहीं गिर

किसी ऊंचाई से गिर जाने पर

शरीर का निकल जाता, कचूमर


किसी की नजर से गिर जाने पर

आत्म दाह हो जाता है, स्व भीतर

किसी की नजरों से तू नहीं गिर

चाहे तू कितनी ही ऊंचाई से गिर


किसी का भरोसे को खो देने पर

रोने लगते, अच्छे से अच्छे पत्थर

किसी का विश्वास शीशे जैसा घर

जो टूट जाये तो फिर न जुड़े नर


सब दौलत चाहे लूट जाये मगर

नहीं लूटे कभी विश्वास का घर

किसी का विश्वास टूट जाने पर

न जुड़े, अमृत भी हो जाता, जहर


सूख जाते अच्छे से अच्छे समंदर

जिनमें नहीं होती, विश्वास लहर

किसी की नजरों से कभी न गिर

नजरों से गिरे, हुए बुरे होते मंजर


अधूरे होते है, अक्सर ही वो सफर

जो चलते टूटे भरोसे के सहारे पर

न मिलते, उन राहों को कभी पत्थर

जिन पर चले, नजरों से गिरे हुए नर


उन्हें नहीं मिलती है, मंजिल डगर

जो चलते, अधूरे भरोसे से डर-डर

किसी की नजरों से तू कभी न गिर

गर गिरा क्या करेगा, स्व इज्ज़त फिर?


जो गिरते, किसी की नजरों से सिर

तम देते है, साखी वो दिवाकर फिर

जो होते अपनी नजर के सच्चे निडर

वो बात करते, आंख में आंख डालकर


वो हर नजर के होते है, सुंदर शज़र

न छिपा होता पाप, जिनके भीतर

वो किसी की नजर से न गिरते, नर

क्योंकि वो स्व नजर का रखते, हुनर



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama