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Goldi Mishra

Drama Inspirational

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Goldi Mishra

Drama Inspirational

एक चुप्पी शाम की

एक चुप्पी शाम की

1 min
370


मैंने शाम को बेहद चुप होते देखा,

उस चुप्पी में कुछ सवालों के भंवर को देखा,

उन उलझे धागों को सुलझाते सुलझाते अब थक सी गई हूं,

इस बसेरे में बस एक खिड़की ढूंढ रही हूं,

ना मन को अपने ज़ाहिर तुमने किया,

ना कभी मेरी थमती खामोशी को सुना,


बन कर कठपुतली अपनी ही डोर से मैं हूं छूटी,

जग को मनाने की आस में मैं खुद से ही रूठ बैठी,

सादा श्रृंगार है,

दाग से सना लिबास है,

मेरा क्या था  कसूर,

मेरे लेख में लिखा था शायद यही दस्तूर,


तलाक एक शब्द था जिसे समाज ने झुठलाया,

कभी मेरे चरित्र पर तो कभी उनके किरदार पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया,

एक रिश्ता जो अब बस समाज के लिए था,

हर रीति रिवाज बस नाम का था,

एक भ्रम था जिसमें मैंने दुनिया अपनी बना ली थी,

ख्वाबों के टांको से जिंदगी की चुनरी सजानी चाही थी,


आज शाम बेहद चुप थी,

मानो मेरी कहानी का वो भी एक पात्र थी,

सबकी बातें अब सिर्फ शब्दों का जंजाल लगती हैं,

मेरी जिंदगी अब मुझे वाकई मेरी लगती है,

कुछ रूठ गए कुछ बेहद दूर हो गए,

हम अपने रंगरेज बन अपने लिबास की कालिख को धो उसे नया रंग दे बैठे।।



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