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Ajay Gupta

Drama Tragedy

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Ajay Gupta

Drama Tragedy

डर

डर

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यह कैसा डर...

अपनी बात रखने का डर

कोई क्या कहेगा...

इतना सोचता है मन

फिर डर...


डर जाता है उन अनहुई बातों से

उनके हँसते चेहरे

शायद मजाक उड़ाते होंगे 

मेरी न कही बातों का...

फिर डर...


क्यों नहीं वह देते ध्यान 

शायद अच्छी नहीं लगी होगी 

मेरी न कही बात

फिर डर...


अपने तक ही रखता हूँ जज्बात,

क्यों मलाल देना किसी को इसलिए खामोश

न जाने क्या बात लग जाये बुरी

हमें न चाहिए कोई स्वर्ण सिंहासन या राजदंड

इसलिए रहता हूँ खामोश...

उनको भी तो नहीं चाहिए कोई जवाब

इन सुप्त पत्थरों से...

झरना कही फूटता है 

रेगिस्तान के मृगतृष्णा से

इसलिए वे भी खामोश हमसे 

यह डर...


दो लोकों में विभक्त

अपने अपने संसारों में जूझते हम

अपने सच को मारते 

दूसरे मिथ्या अपनाते

पर खुश है अपनी खामोशी से

क्योंकि अगर बोले तो

कोई क्या सोचेगा...

इसलिए खामोश

कोई क्या सोचेगा...

फिर डर...


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