"इरादे बुलंद"
"इरादे बुलंद"
जिनके इरादे होते है, बुलंद
वो नभ में उड़ते है, स्वछंद
कठिनाइयों को वो देखकर,
मुस्कुराते है, सदैव मंद-मंद
विष भरी हुई, इस दुनिया में
नेक इरादे रह गये है, अब चंद
नेक सोच से रखते, जो संबंध
वो सुधा जैसे है, अमृत खंड
वो ही लोग बनते दरिया बूंद
जिनके इरादे होते, गज सूंड
जो पहने आलस्य नर मुंड
वो नहीं पाते, सफलता कुंड
वो ही लोग पाते है, मकरंद
जो लोग खाते है, विषैले डंक
जिन लोगों के इरादे है, अंध
वो स्वयं को दगा देते है, नंद
जो झूठ जाल के रखते, फंद
उन्हें देर-सवेर रब देता है, दंड
वही लोग फैलाते है, सुगंध
जिनकी सोच में है, सत्य रंग
वो न बरसते है, कभी मतंग
जो शोरगुल कर लड़ते है, जंग
वही बनते साखी मस्त मलंग
जो निष्पापी जन होते, स्वछंद
जिनके इरादे होते है, बुलंद
वो फ़लक में उड़ते है, स्वछंद
श्रम की ऐसी खाते है, सौगंध
अंबर तक मिला देते, भू संग।