बाती टूट जाती है: परिंदा
बाती टूट जाती है: परिंदा
हमने देखा परिंदो को,
जकड़े बैठे जो डालों को,
लड़ाते जो हैं डर अपना,
हराते तूफ़ा चालों को।
डर कभी जीत जाता है,
डर कभी हार जाता है,
हवा का जो कोई झोंका,
अपनी ताकत बताता है।
हमने देखा है रेती को,
यू हीं ऊंचाइयां चढ़ते,
हमने देखें हैं वो आंसू,
चीर कर जो गगन गिरते।
लगाए आस बैठे हम,
तूफां ये बीत जायेगा,
परों को खोल कर पंछी,
अपने घर को भी जायेगा।
हौसले के सभी इम्तिहां,
बड़ी शिद्दत से देकर भी,
तिनके मेरे घोसलें के,
जमीं पर बिखरे जाते हैं।।
बाती टूट जाती है दिया जब भी जलाते हैं....