भक्ति रचना
भक्ति रचना
मन बसिया तू मतवारो कान्ह उरझी पैंजनि नेक सुरझाय दे।
लला देखन दै सिर मोर मुकुट मोय चटक चुनरिया पहराय दै।।
बडो ढीट कन्हैया रार करै तेरी मोहनी जादू करि गयी रे!
मैं रास में तबहिं आऊँ मोहन जब हँसुली कंगन तू गढवाय दे।।
तू भोरी गोरी बृज छोरी मधुमय रस की गगरी हौ।
रूप अनूप दिव्य मृगनयनी प्रेमसिक्त रस सिगरी हो।।
कंगन हँसुली बेंदा तिलरी नथुनी कुंडल रूचे अनंग,
तुम आधे राधे श्यामल तुम नेह नदिया की कगरी हो।।