STORYMIRROR

कुंडलिया

कुंडलिया

1 min
2.4K


तपै तवा सी यह धरा दिनकर उगलैं आग।

छाँह दुपहरी ढूँढती ठंडाई केरी फाग।।

ठंडाई केरी फाग कहाँ जा ढूढैं गगरी।


चले बबूरा ब्यार धूर की आंधी सिगरी।।

कहें प्रखर चितलाय डोकरा रामहि राम जपै।

छानी ओसरा छप्पर सबरैं आग हि आग तपै।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama