पद
पद
राम जी ! आवहु फिर इक बार।
मात पिता कौं कंस त्रास दैं पीर को नहि उपचार।
आजु अहिल्या भई पाथर जस आय करौ उद्धार।।
भेद विभेद की गहन खाई अब हियन डारै द्वेष पजार।।
बिसरी नीति औ' रीति भुलाने बाढ़ै पापाचार।
संस्कार कै डूबी लुटिया हा ! कोढ बनो अतिचार।।
असुर हनौ आ, हे असुरारी ! त्रस्त प्रखर संसार।।