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Dr. Prakhar Dixit

Drama

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Dr. Prakhar Dixit

Drama

ग्रीष्म ऋतु दशा

ग्रीष्म ऋतु दशा

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को प्रकोप यहु चढ़े ताप री उतान।

धरा पै घनो विक्षोभ कृशानु शर चढो कमान।।

नीर विहीन कुआँ ताल उजाड लगैं खेतहार,

री ! जेठ द्वै प्रचंड होत विटप तर मुधुर गान।।


रसाल तरु लदे आम निकुंज वन भ्रमर तान।

छाँह चाहे छाँह आज पना पियत परैं प्रान।।

सो मृगतृषा दूर देख जल चहैँ जीवजल,

स्वेदसिक्त क्लांत काय प्रखर किम परे जान।।


शुष्क पात डार डार ग्रीष्म की बिछी बिसात।

ज़िंदगी दुरूह होत उमस भरी नित प्रभात।।

मुखर कहाँ मौन आज विहग प्यास सैं दुखी,

प्रणय जरा उम्र जान काम्य वपु टप टपात।।


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