वियोग
वियोग
अल्हड यौवन लै
अंगडाई मेरो रग रग मदन सतावै।
फागुन की फगुनाई
दइया रहि रहि जिया जरावै।।
नखशिख भयी रसाल रसीली
महुआ सी मदमाती मैं
ता पर सैंया भये विदेशी
हम कैसे भार उठावैं !
अल्हड यौवन लै
अंगडाई मेरो रग रग मदन सतावै।
फागुन की फगुनाई
दइया रहि रहि जिया जरावै।।
नखशिख भयी रसाल रसीली
महुआ सी मदमाती मैं
ता पर सैंया भये विदेशी
हम कैसे भार उठावैं !