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बचपन

बचपन

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छौनो सी धमा चौकडी

अल्हडपन और नादानी थी।

माँ जी का शैतान दुलरुआ

दादी माँ की दरबानी थी।।

गुल्ली-डण्डा लपो कबड्डी

कैंची सायकिल पैंताबाजी,

सख़्त पढ़ाई दृढ़ अनुशासन

वर्ना तन की गुडधानी थी।।


मेरी करतूतों पर पर्दा

अम्माँ जी डाला करती थी।

बाबू जी की आहट पाते ही

घर में शांति रहा करती थी।।

दीदी के संग नोकझोंक तो

अक्सर रार करा कर छोडे,

हुए सयाने बचपन छूटा

लेकिन जब तब याद हुआ करती थी।।


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