बचपन की बस्ती
बचपन की बस्ती
प्यारे बच्चों आओ चलें,
कुछ खेलें कूदें मस्ती में।
आज तुम्हे मैं ले चलती हूँ,
अपने बचपन की बस्ती में।
खोखो और कबड्डी के,
वे खेल बड़े ही निराले थे।
छुआछुअव्वल, पागलवाला,
खेलते हम मतवाले थे।
चिड़िया उड़ और तोता उड़,
की चलती लम्बी पारी थी।
विष और अमृत, लुक्काछिप्पी,
सब खेलों पर भारी थी।
खुद ही झगड़ना, खुद ही सुलझना,
समायोजन सबमें बेहतर था।
व्यक्तित्व विकास प्राकृतिक था,
खेल ही सबका मन्त्र था।
सुनो दुलारों अब तुम छोड़ो,
यू ट्यूब, टीवी, पब जी।
हाथ थाम कर दौड़ो भागो,
बनो ज्ञानी, मजबूत सभी।
