किसान की बेटी
किसान की बेटी
मैं एक किसान की बेटी हूँ,
उसकी करुण कथा को कहती हूँ।
उसके अनवरत संघर्षों के आगे,
नतमस्तक रहती हूँ।
निज इच्छाएं अपने पिता से,
कभी नहीं कह पाई मैं,
"पैसे नहीं हैं, व्यर्थ दुखी न हो
मेरे कारण।"तो आंसू में ही मुस्काई मैं।
किन्तु ह्रदयतल से ठान लिया,
अपने मन में मान लिया।
खूब पढूंगी, खूब लिखूंगी,
प्रण था मेरा कि किसान नहीं बनूंगी।
नहीं बनना मुझे किसान,
न बनना मुझे अन्नदाता।
जो औरों की मिटाकर भूख,
खुद भूखा रह जाता।
आखिर क्यों है ऐसा,
जो उपजाता है वही ठगा सा रह जाता है।
और जो बेचे बनाकर पैकेट,
लाभ वही कमाता है।