भरोसा
भरोसा
आज मेरी क्यारी में बैठा परिंदा
मुझे देख छुप गया
मैं रोज़ उसको दाना डालता हूँ
फिर भी वो डरा सहमा
अपने पंखो के भीतर छुप गया
जैसे बचपन में हम आँखों पे
हथेली रख छुप जाया करते थे
वैसे ही भोलेपन से वो भी
मुझसे छुप गया
उसने सोचा के मैंने जाना नहीं
के वो वहाँ बैठा हुआ है
मैं भी चुपके से पानी रख
वहाँ से निकल गया
उसके भोलेपन पर मुस्कुराया भी
और थोडा रोना आया भी
फिर समझा के वो क्यों सहम गया
हम जितना चाहे पुण्य कमा ले
दाना डाल के उनको अब,
उनका भरोसा हम मानवों से
उठ गया
वो मुझे देख सहमा था इतना
के अपने उड़ने का हुनर
भी भूल गया
आज मेरी क्यारी में बैठा परिंदा
मुझे देख छुप गया