“ज़िन्दगी का कायदा ” हिंदी कविता
“ज़िन्दगी का कायदा ” हिंदी कविता
कुछ भी मामूली सा न मिले और ज़िन्दगी मुहाल हो जाये,
हो दिल में सवाल गहरे , पूँछ लूँ , तो बवाल हो जाये।
हर रोज़ बे – सिर – पैर सी नज़र आती है ज़िन्दगी,
पता चले कि , शुरू कहाँ से करूँ? तो कमाल हो जाये।
बहुत शौक था हमें, खास चीज़ों से , घर को सजाने का,
क्या करे कोई ? जब अपनी ही पसंद, एक सवाल हो जाये।
एतबार का बवंडर, एक ख्वाब से, बहुत पीछे ले गया,
दोबारा ये गलती करूँ, मेरी ये मजाल हो जाये।
बहुत वख्त लगा के, ज़िन्दगी का कायदा, कुछ समझ आया,
मसरूफ या मशहूर हो कर के जीता हूँ , जो दर्द के लिए एक मिसाल हो जाये।
कोई शर्मिंदा करता था, कोई नज़र चुराता था,
अब सोचता है, मुलाक़ात किसी, सूरत – ए – हाल हो जाये …….