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Archana Verma

Others

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Archana Verma

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मृत टहनियाँ

मृत टहनियाँ

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वो टहनियाँ जो हरे भरे पेड़ों

से लगे हो कर भी

सूखी रह जाती है 

जिन पे न बौर आती है 

न पात आती है 

आज उन मृत टहनियों को 

उस पेड़ से

अलग कर दिया मैंने…  

हरे पेड़ से लिपटे हो कर भी 

वो सूखे जा रही थी 

और इसी कुंठा में 

उस पेड़ को ही 

कीट बन खाए 

जा रही थी


वो पेड़ जो उस टहनी को 

जीवत रखने में 

अपना अस्तित्व खोये 

जा रहा था 

ऊपर से खुश दिखता था 

पर अन्दर उसे कुछ

होए जा रहा था 

टहनी उस पेड़ की मनोदशा 

को कभी समझ न पायी

अपनी चिंता में ही जीती रही 

खुद कभी पेड़ के

काम न आ पाई 

पेड़ कद में बड़ा होकर भी 

स्वभाव से झुका रहता था 

टहनी को नया जीवन 

देने का निरंतर 

प्रयास करता रहता था 


एक दिन पेड़ अपनी जड़ें 

देख घबरा गया 

तब उसे ये मालूम चला के 

उसका कोई अपना ही 

उसे कीट बन के 

खा गया 

उसे टहनी के किये पे 

भरोसा न हुआ 

उसने झट पूछा टहनी से 

पर टहनी को 

ज़रा भी शर्म का 

एहसास न हुआ 

वो अपने सूखने का 

दायित्व पेड़ पर 

ठहरा रही थी 

चोरी कर के भी 

सीनाजोरी किये जा रही थी 


पेड़ को घाव गहरा लगा था 

जिस से वो छटपटा रहा था 

स्वभाव वश 

टहनी को माफ़ कर

उसे फिर एक परिवार मानने 

का मन बना रहा था 

मुझसे ये देखा न गया 

मैंने झट पेड़ को 

ये बात समझाई 

की टहनी कभी तुम्हारी 

उदारता समझ न पाई 

और अपनी चतुराई 

के चलते खुद अपने 

पैरों पर कुल्हाड़ी 

मार आयी 


बहुत अच्छा होता है 

ऐसी टहनियों को 

वक्त रहते छांटते रहना

टहनियों 

को जीवन देने की लालसा 

में दर्द मोल न लेना 

मेरी ये बात सुन पेड़

थोड़ा संभल गया 

कुछ मुरझाया था 

ज़रूर पर 

ये सबक उसके दिमाग 

में हमेशा के लिए 

घर कर गया 

उसकी हामी ले कर

पेड़ को 

मृत टहनियों  से

मुक्त कर दिया मैंने…  

आज उन मृत टहनियों को 

पेड़ से अलग कर 

दिया मैंने ….



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