STORYMIRROR

Archana Verma

Abstract Romance

3  

Archana Verma

Abstract Romance

इंतजार

इंतजार

1 min
341


लहरें होकर अपने सागर से आज़ाद

तेज़ दौड़ती हुई समुद्र तट को आती हैं,

नहीं देखती जब सागर को पीछे आता

तो घबरा कर सागर को लौट जाती हैं, 

कुछ ऐसा था मेरा प्यार

खुद से ज्यादा था उस पे विश्वास,

के मुझसे परे, जहाँ कहीं भी वो जायेगा

फिर लौट कर मुझ तक ही आएगा , 


इंतजार कैसा भी हो सिर्फ सब्र और

आस का दामन थामे ही कट पाता है ,

क्या ख़ुशी क्या ग़म, दोनों ही सूरतों में

पल पल गिनना मुश्किल हो जाता है , 

आज जीवन के इस तट पर

मैं आस लगाये बैठी हूँ

सागर से सीख रही हूँ इंतजार करना

और ढलते सूरज के साथ पक्षियों का

घर लौट आना देख रही हूँ… 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract