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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

रहूंगा आजीवन आभारी प्रभु तेरा

रहूंगा आजीवन आभारी प्रभु तेरा

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रहूंगा आजीवन आभारी प्रभु तेरा,

रही असीम अनुकम्पा प्रभु तुम्हारी।

आजीवन आभारी रहूंगा,

मैं आजीवन ही आभारी।


कई बार जीवन में आईं,

समस्याएं बहुत ही सारी।

सदा कृपा कीन्हीं सेवक पर,

वे सब आसान हो गईं सारी।


रहूंगा आजीवन आभारी प्रभु तेरा,

रही असीम अनुकम्पा प्रभु तुम्हारी।

आजीवन आभारी रहूंगा,

मैं आजीवन ही आभारी।


एक बार ही नहीं प्रभु जी ,

ऐसा हुआ अनेक ही बार।

छूटा एक सहारा तो फिर पाए,

मैंने उसे एक के बदले चार।


हौसला कभी टूटने न पाया,

बिन हारे जीतीं बाज़ी सारी।

रहूंगा आजीवन आभारी प्रभु तेरा,

रही असीम अनुकम्पा प्रभु तुम्हारी।

आजीवन आभारी रहूंगा,

मैं आजीवन ही आभारी।


ऐसा भी कुछ बार हुआ,

वह हुआ न जो मैंने था चाहा।

इसकी जगह काफी फिर पाया,

और हृदय ने तुमको बहुत सराहा।


मेरी चाहत से बेहतर थी प्रभुजी,

हर एक ही योजना तुम्हारी।

रहूंगा आजीवन आभारी प्रभु तेरा,

रही असीम अनुकम्पा प्रभु तुम्हारी।

आजीवन आभारी रहूंगा,

मैं आजीवन ही आभारी।



जैसी कृपा करी प्रभु मुझ पर,

वैसी प्रभु सब पर रखना बनाए।

जड़ -चेतन सबके ही रक्षक हो,

सबका यह विश्वास न टूटने पाए।


तव अनुकम्पा रहे सतत् सभी पर,

तेरे चरणों में विनती यही हमारी।

रहूंगा आजीवन आभारी प्रभु तेरा,

रही असीम अनुकम्पा प्रभु तुम्हारी।

आजीवन आभारी रहूंगा,

मैं आजीवन ही आभारी।


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