Ghazal "Inkishaf "❤️
Ghazal "Inkishaf "❤️
क्यूँ आँख हो गई मेरी पुरनम हवा के साथ
शायद पुकारता है मुझे ग़म हवा के साथ
सिखला दिया जहाँ ने तुम्हे भी जफा फरेब
तुम भी रकीब बन गए जानम हवा के साथ
जबसे उड़ा के ले गई मुफलिस के सर से छत
तब से रहा गिला मुझे हर दम हवा के साथ
चलती हैं जब भी ज़ोर से पुवाईयाँ कभी
रहता है दिल में दर्द भी मुबहम हवा के साथ
इक याद-ए-रफ़्तगाँ थी मेरे पास में वही
लड़ती रही जुनून से बाहम हवा के साथ
उसको बहा के ले गई जबसे हवा ए नौ
करता हूँ बात चीत ज़रा कम हवा के साथ
काशिफ उसी को देख के पाया है हौसला
जुगनु दिखा रहा था जो दम खम हवा के साथ।