ग़ज़ल
ग़ज़ल
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होंट उसने कभी सिये ही नहीं
इस लिए ज़ख्म भी भरे ही नहीं
अजनबियत की धुंध है अब तक
उसकी आँखों को हम दिखे ही नहीं
किस लिए मौत से डरूँ बोलो
ज़िन्दगी तो कभी जिये ही नहीं
ज़िन्दगी पर तेरी हुकूमत थी
इस लिए मौत से डरे ही नहीं
लोग मिलते हैं बारहा लेकिन
ऐसे बिछड़े थे हम मिले ही नही
जिस ने जाँ तक निसार दी तुम पे
यार उसके भी तुम हुये ही नहीं
अब तो उसकी तलाश है मुझको
जिससे मिल के ये दिल दुखे ही नहीं
ज़ीस्त पूरी निकल गई काशिफ
दाग़ दिल के अभी सिले ही नहीं।
