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Kashif Ahsan

Romance Inspirational

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Kashif Ahsan

Romance Inspirational

सुकूत-ए-ख़ौफ़

सुकूत-ए-ख़ौफ़

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किसी के इश्क में दिन यूँ गुज़ारता हूँ मैं

जो बाज़ी जीतनी होती है हारता हूँ मैं


कोई बुज़ुर्ग मिरे सर पे जब भी हाथ रखे 

तब अपने आप को अक्सर निहारता हूँ मैं


इसी लिए तो बहुत लोग मुझसे जलते हैं 

कि आईनों से जो पत्थर संवारता हूँ मैं


मेरे रकीब को है नाज़ इस लिए मुझ पे 

अना बचाता हूँ पहले फिर हारता हूँ मैं


न जाने कितनी ही यादों के साये में अक्सर 

तमाम दिन की थकन को उतारता हूँ मैं


इसी अदा पे तो मरता है वो हँसीं मुझ पे 

कि सिर्फ दिल ही नहीं जान वारता हूँ मैं


किसी के प्यार में करता हूँ रोज़ खूँ अपना 

अना को अपनी कई बार मारता हूँ मैं


तुम्हारे बाद यही मश्ग़ला है अब काशिफ 

सुकूत-ए-ख़ौफ़ में खुद को पुकारता हूँ मैं।।



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