जिंदगी का नजारा, कहां ऐसा
जिंदगी का नजारा, कहां ऐसा
घर में बैठा था,
मन उदास था,
तरह तरह के,
नकारात्मक सवाल,
मन में उठ रहे थे,
अचानक मन बनाया,
घुमने का,
तो विचार आया,
क्यों न समुद्र तट पे।
जहां एक तरफ,
नीला अथाह समुद्र,
दुसरी तरफ,
रेत का किनारा,
लोग टहल रहे,
भिन्न भिन्न बस्रों में,
कोई लेटा,
चटाई बिछाकर,
कर रहा सन बाथ,
कोई बैठा,
एक बड़ी सी छतरी के नीचे,
कर रहा जलपान,
ठण्डी हवाएं आ रही,
समुद्र की ओर से,
जब शरीर को छुती,
तो अजीब सी,
आनंददायक झूरझूरी पैदा करती।
अगर आप चले जाओ,
समुद्र के करीब,
तो लहरेंं आती,
आपको पानी में छोड़,
आगे निकल जाती,
और जब लौटती,
तो उनके साथ,
आपकेे पांव केे नीचे की,
रेत भी बहती,
एक अदभुत आनंद देती,
आप में सफुर्ती आ जातीी
आप फिर से,
ऊर्जावान हो जाते,
परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए,
फिर से तैयार हो जाते।
लेकिन अधिक पर्यटक आनेे सेे,
समुद्र तट पे,
गंदगी भी फैलने लगी,
अगर न पाया गया काबू,
तो परियावरण संतुलन बिगड़ेगा,
और एक नई समस्या खड़ी कर देगा,
क्यों न एक,
समुद्र तट मैनैजमैंट पुलिस बनाई जाए,
जिसको येे हिदायत दी जाए,
जो भी फैलाए गंदगी,
उसे सजा दी जाए।