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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance Classics Inspirational

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance Classics Inspirational

बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

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बसेरे से दूर आ गया, अपनों से दूर आ गया           

न जाने कब लौटूंगा अपनी आशियां में !

माँ मेरी राह ताक रहीं होंगी !

बहन होंगी पलकें बिछायी

शरारती भाई के इंतजार में।


प्रेमिका मेरी आश देख रही होगी

वो खुद को रह -रह तसल्ली दे रही होगी।

वह इस उम्मीद में होगी कि कब उसे भी

साथ ले जायेगा उसका प्रियतम !              


बसेरे से दूर आ गया, मैं !  

नई -नई फिजाओं में नई-नई साँसे,

पानी यहाँ की !

न जाने किस सुदूर आ गया,

बसेरे से दूर आ गया।


सब नये- नये लोग यहाँ,

अपने को इसमें ढूंढ रहा मैं,

पर वो अब कहाँ मिलनेवाले !

वो 'लीली ' खिलती -मुसकाती

फूल कहाँ ? यहाँ !                    


वो चश्मेवाली दोस्त कहाँ,

जो हमसे लड़ती -झगड़ती रहती थी !

वो निरू जैसी बचपन की दोस्त यहाँ, कहाँ !

सब नये -नये हैं,यहाँ !

बसेरे से दूर आ गया मैं !

न जाने कब लौटूंगा अपने आशियां

बसेरे से दूर।


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