बसेरे से दूर
बसेरे से दूर
बसेरे से दूर आ गया, अपनों से दूर आ गया
न जाने कब लौटूंगा अपनी आशियां में !
माँ मेरी राह ताक रहीं होंगी !
बहन होंगी पलकें बिछायी
शरारती भाई के इंतजार में।
प्रेमिका मेरी आश देख रही होगी
वो खुद को रह -रह तसल्ली दे रही होगी।
वह इस उम्मीद में होगी कि कब उसे भी
साथ ले जायेगा उसका प्रियतम !
बसेरे से दूर आ गया, मैं !
नई -नई फिजाओं में नई-नई साँसे,
पानी यहाँ की !
न जाने किस सुदूर आ गया,
बसेरे से दूर आ गया।
सब नये- नये लोग यहाँ,
अपने को इसमें ढूंढ रहा मैं,
पर वो अब कहाँ मिलनेवाले !
वो 'लीली ' खिलती -मुसकाती
फूल कहाँ ? यहाँ !
वो चश्मेवाली दोस्त कहाँ,
जो हमसे लड़ती -झगड़ती रहती थी !
वो निरू जैसी बचपन की दोस्त यहाँ, कहाँ !
सब नये -नये हैं,यहाँ !
बसेरे से दूर आ गया मैं !
न जाने कब लौटूंगा अपने आशियां
बसेरे से दूर।

