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Fahima Farooqui

Abstract Classics

4  

Fahima Farooqui

Abstract Classics

उलझनें

उलझनें

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उलझन ज़िन्दगी की सुलझाऊँ कैसे।

पैरों में पड़ी बेड़ियाँ दिखलाऊँ कैसे।


ताले लगा दिए मुँह में ज़ुबान देकर,

ज़ुबान पे लगे ताले दिखलाऊँ कैसे।


ज़ख़्मी है कलेजा लफ़्ज़ों के तीर से,

छलनी हुआ है कलेजा दिखाऊँ कैसे।


पढ़ सको पढ़ लो अल्फाज़ में दर्द मेरा,

पन्नों में ज़माने के सितम दिखाऊँ कैसे।


है ज़िद्द आज़ाद फ़िज़ा में परवाज़ की,

अब इस नादान दिल को समझाऊँ कैसे।


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