बेटी
बेटी
फूलों सी है कोमल तू,
है अभी अबोध बच्ची तू,
मासूम सी तेरी आंखों में
ना जाने कितने सपने हैं छिपे।
तेरे नन्हे-नन्हें कदमों को
ना जाने कितने उड़ान है भरने,
तेरे छोटे-छोटे हथेलियों पर
ना जाने कितनी जिम्मेदारियां है,
देख तुझे मन पुलकित है
पर तेरे चिंता में मन अशांत है
की कहीं तुझे कोई मेरी आंखों से
ओझल ना कर दें,
बेटियां पराई होती है
ये कह कर हमें मजबूर ना कर दें,
ये कुछ पंक्तियां हर मां बाबा की होती है।
ये दर्द हर मां बाबा का हाले दिल बयां करती है
पर बेटी की पुकार तो हर दर्द का मरहम है
हां, मैं बेटी हूं
ये कहना तो गर्व है,
मैं ही गरिमा हूं, गौरव हूं,
मां-बाबा के आंखों का मैं भविष्य हूं।
मां-बाबा के अथाह प्रेम सागर से
सींचा हमारा ये जीवन है।