सागर
सागर


तेरे आगोश में आकर बैठना
तुझे दूर तक निहारना
तेरे उठते गिरते लहरों से
यूं ही किसी धुन का बजना
मन को बहुत सुकून देता है।
तेरे हर रूप पर दिल
यूं ही लूट सा जाता है
कभी शांत होकर तेरा बहते रहना
तो कभी हिलोरे मार कर हमें भिंगना
लगता है जैसे कोई खेल खेलती हो।
सूरज की पहली किरण के पड़ते ही
ना जाने क्यों तेरा रूप खिल सा जाता है
और उस पर से तेरा यूं इठला कर बहना
दिल यूं ही तेरी ओर खींचा चला जाता है।
तेरे लहरों का, किनारों से टकराना
और टकराकर वापस जाना
समंदर और साहिल का ये इश्क
बड़ा मनमोहक सा लगता है।