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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Classics Inspirational Others

4.9  

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Classics Inspirational Others

खुद को बड़ा बनाओ तो

खुद को बड़ा बनाओ तो

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बस कहने से नहीं चलेगा, खुद को बड़ा बनाओ तो,

खुद के जख्म छुपाकर प्यारे, गैरों को अपनाओ तो।।


नदी बड़ी है अहसासों की, नाले ताल तलैया सब,

एक बूँद आँखों से लेकर, सोयी नदी जगाओ तो।


पत्थर में भी पीर छुपी है, वह भी रोता है अक्सर,

कभी अकेले वीराने में, उसको गले लगाओ तो।


तिनके को तिनका कहना भी, अपनी ही लाचारी है,

देखो कितनी आग छुपी है, चिनगी जरा दिखाओ तो।


खुद्दारी की कीमत पूछो, जिसको सबने रौंदा है,

उसी धूल की जरा हवा से, बातें करो कराओ तो।


बहुत सरल है दिल के टुकड़े, करना और जताना भी,

घर बनते हैं मगर रेत की, कीमत जरा बढ़ाओ तो।


रूखी सूखी अंतड़ियों में, जान अभी भी बाकी है,

जरा हौसले की मिट्टी से, उसपर देह लगाओ तो।


बहुत हुआ अब तो मत बोलो, दुनिया शायद बहरी है,

समझाना तो बहुत सरल है, खुद को भी समझाओ तो।


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