ओ कान्हा
ओ कान्हा
मन विचलित है, मन है व्याकुल
प्रेम की धुन कोई बजा दो ओ कान्हा
प्रीत के रस मे डूबा दो ओ कान्हा
विरह की वेदना सही ना जाये
मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा
थोड़ी कृपा कर दो ओ कान्हा
प्रेम की धुन बजा दो ओ कान्हा
मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा
नयनन मे प्यास है आये ना कुछ भी रास
चलत - चलत रुक जात है पग राह मे
अँखियो से झर - झर मोती बह रहे है
मुस्कान गयी है खो
थोड़ी कृपा कर दो ओ कान्हा
प्रेम की धुन बजा दो ओ कान्हा
मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा।
