STORYMIRROR

Anjali Singh

Abstract Classics

3  

Anjali Singh

Abstract Classics

ओ कान्हा

ओ कान्हा

1 min
12K

मन विचलित है, मन है व्याकुल 

प्रेम की धुन कोई बजा दो ओ कान्हा 


प्रीत के रस मे डूबा दो ओ कान्हा 

विरह की वेदना सही ना जाये 

मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा


थोड़ी कृपा कर दो ओ कान्हा 

प्रेम की धुन बजा दो ओ कान्हा 

मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा


नयनन मे प्यास है आये ना कुछ भी रास 

चलत - चलत रुक जात है पग राह मे 

अँखियो से झर - झर मोती बह रहे है 

मुस्कान गयी है खो 


थोड़ी कृपा कर दो ओ कान्हा 

प्रेम की धुन बजा दो ओ कान्हा 

मुरली की धुन सुना दो ओ कान्हा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract