STORYMIRROR

Shivbhan singh

Tragedy Classics Inspirational

3  

Shivbhan singh

Tragedy Classics Inspirational

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

1 min
130

पेट मे जब ज्वाला जगी, मुख मे जब तृष्णा लगी 

खिलखिलते बाग को न जाने, किस की नज़र लगी 

उस चिलचिलाती धूप मे, जब बदन भी जल पड़ा

तब आसमाँ भी रो पड़ा। 


पाव मे छाले पड़े, मुख को न निवाले मिले , 

एक पल मे ही, उस माँ की भी साँसे थमी 

छूट कर ह्रदय से, एक बच्चा ज़मी पर गिर पड़ा

तब आसमाँ भी रो पड़ा।


एक और बच्चा जल गया,भूख की उस आग मे, 

साँस अंतिम मे कई प्रश्न थे ,उसके अपने माँ बाप से 

क्या विधता सो रहा, हुँ पूछता मै आप से।

छोङ कर घर द्वार अपना क्यू, ये करवा सड़को पर खड़ा

तब आसमाँ भी रो पड़ा।


गिन रहे थे पाप वो, जो शायद किये थे न कभी, 

ये खेल कैसा हो रहा, सोच मे थे अब सभी। 

चीखती थी हर दिशा, अब इसी कोहराम से,

खाया था जो निवाला, शायद था वो भी सड़ा, 

तब आसमाँ भी रो पड़ा।


भीड़ के कंधो पे, वो लाश भी न उठ सकी , 

पालकी दुःख की, स्वयं के बाप से भी न हिली, 

गोद मे लेकर के उसको, उसकी माँ जब ढोने लगी 

देखता ही रह गया यमदूत, जो पास मे था खड़ा, 

तब आसमाँ भी रो पड़ा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy