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Shishpal Chiniya

Romance Tragedy Classics

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Shishpal Chiniya

Romance Tragedy Classics

ओ साथी

ओ साथी

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आफ़ताब जो ढल गया बातों ही बातों में।

जाने कब शशि ढल गया रातों ही रातों में

जिन्दगी के सपने कब पूरे होंगे, मेरे कभी

सोचते ही चला गया, घिर गया जज्बातों में।


एक सहारा ख्वाबों से जो मैं रात को देखता हूँ।

है एक किनारा भी,स्वप्न लिए रोज बैठता हुँ।

बस भटक गया हूँ थोड़ा सा स्वप्न की दिशा में

हर ख्वाब पूरा करने को, खुद में खुद देखता हूँ।


हैरान रहता हूँ ये अक्सर सोचकर हर दिन मैं।

हर कोई जी सकता है, हर मतलबी के बिन में

आदत जो बन है, खामोश रहने की जमाने को

वरना तहलका मचा दिया होता, हर किसी ने।


चार जने साथ होकर, एक महफ़िल बनाते हैं।

खुद की है महफ़िल, टूटे दिल फिर बनाते हैं।

है ठीक यहाँ तक कि, हम खुद पर चर्चा करें

लोग अपनी महफ़िल चर्चे दूसरों के चलाते हैं।


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