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Kunwar Singh

Romance Classics Others

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Kunwar Singh

Romance Classics Others

ख़्याल इश्क़ का!

ख़्याल इश्क़ का!

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इश्क़ में 

कसमें-वादे होते हैं

और फिर 

टूट जाते हैं।


फिर से ख़्याल 

हो आया।

फिर से 

इश्क़ हुआ।

पर कसमें-वादे

ना हुआ।


"इश्क़" में मैं 

"तुम" बन जाऊँ

और तुम 

"तुम" ही रहो।


"ख़्याल" रखना 

बस इश्क़ का

तुम "मैं"

ना बन जाना 

और मैं 

"मैं" ना हो जाऊँ।


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