कोना
कोना
दीवारों की एक दूसरे को
छूने भर की कोशिश से,
बन जाता है, एक कोना।
सिर झुकाए उसी कोने में,
अकेला विचार करता।
सिर घुटनों में दिए,
कुछ याद करता कोई।
ठंडी हवा के छुअन सी यादें,
मुस्कुराता चेहरा किसी का।
ममता के रस से भरी,
लड्डुओं की बारात।
घेवर, मिठाईयां आती याद।
मुसीबतों के पहाड़ को
पल में राई बनाती ,
वो मुस्कुराहट।
लाती होगी सवेरा आज भी,
किसी आंगन में।
बिंदी लगा माथा, या बिन बिंदी का।
रोशनी फैलाता होगा,
सुरमई शाम सी।
उंगलियां /हथेलियां मेहनतकशों सी,
सलीके से, सजाती होंगी घर को।
मां कह कर, झूल जाती
होंगी कुछ जोड़ी बांहे,
रुंधे गले से उसके,
बेटा की आवाज़ आती होगी।
डांट देती होगी
हक से अभी भी बच्चों को,
पति से अपने रूठ जाती होगी।
यूं ही खाली पड़े कोने में बैठा कोई,
क्या क्या ? सोच जाता है।
कल्पनाओं के घोड़ों का सवार,
अनजान सफ़र, अनजान मंज़िल का,
जाना/पहचाना राही।