मानवता
मानवता
सन 2020 ने किया पदार्पण,
कोरोना ने भी दस्तक दी थी,
मास्क और 2 गज की दूरी,
मिलने जुलने की मजबूरी।
अपने परायों के दुख देखे,
रोजगार से हो गई दूरी।
कष्ट बहुत झेले थे फिर भी,
थोड़ी सी तो राहत दी थी
कोरोना महामारी ने दी,
भोर -सुहानी,शाम- सुरमई,
सारा आलम महका- महका,
सांसो ने नवजीवन पाया।
कुदरत ने आंचल फैलाया,
मानव को जीना सिखाया।
चांद- सितारे, जगमग- जगमग,
अंबर शीशे सा चमकाया।
दया- एकता और अनुशासन,
मानवता जन-जन में जागी,
एक दूजे का कष्ट मिटाया,
खोया भी बहुत पर, बहुत कुछ पाया।
