विश्व:एक शान्तिकुंज
विश्व:एक शान्तिकुंज
शान्ति,अन्तःसलिला,
सत् चित् बोध है,
दिव्य, शुद्ध,निष्पाप,
'मैं हूं' अनुभूति है.
जब यत्न करें,
पाने का, होती अदृश्य,
अन्तःवीक्षण करें, तो
होती भासित,कर मुक्त
अंतर,बाह्य,समभाव,
आलोक मय....विचरती
चहुं दिशा....
'राग, आसक्ति,मोह,
अमर्ष,असूया,अहं-
कार,होते अस्त, देखें,
हम जो अरि समझ,
क्षण एक उन्हें....."
"हृदय-पुष्प रंगमहल,
सलोनी,सुंदरी, सप्त
सखियां,दिल धड़के,
संग,मुदिता,सत्य....
मैत्री, करूणा, सेवा,
स्नेह, सह-धैर्य......"
कहे,अणु-अंतः ध्वनि,
"एकाकार ,व्यष्टि-
शान्ति, समष्टि- शान्ति
से,मगन अवनि- अंचल
शान्ति, नहीं निःशब्द, नीरस,
लें जैतून-पत्र चंचु में, उड़ान,
भरते,कपोत- द्वय,सत्य-प्रिय,
मोद झंकार, जन-गण मन में
आशा भरती, विश्वास, सभी में,
विकास शाश्वत,श्रम- बल, करे,
करतब, जलवायु- नियंत्रण,
ऊर्जा- प्रबंधन, शुद्ध तकनीक,
स्वदेशी, न्याय की फैले तरंग,
प्रतिष्ठा,भेद रहित,धारण हो
स्नेह का, दोष में गुण दर्शन,
नफ़रत की हार, विश्व-शांति
मुख मुस्कान विजय- श्री की।
