जय जगत में,'स्वर-भारती'
जय जगत में,'स्वर-भारती'
जिसमें युग -सत्य,लिखित
वैदिक वाङ्ग्मय,
प्रति-युग प्रति -समूह ,
वेदना की व्यथा, 'ज्ञान -विज्ञान-
तृप्तात्मा' का परमानन्द ,
जीवन-शिक्षण व चिंतन के
हर अर्थ- जिसमे सहज
वाणी में समाविष्ट हों ;
'मानकीकृत',सरल है हिन्दी वह.....
व्याप्त हर विषय-ज्ञान में,
"अणोरणीयान " "महतो -
महीयान " अन्तः सम्बद्ध,
श्रवण-वाचन-पठन,
लेखन-हर कौशल में,सतत्
सुसंस्कृत,संवृद्ध है,हिंदी वह.....
बोध जहाँ सत्-असत् का,
मूर्त-अमूर्त ,भावाभाव का ,
ज्ञाताज्ञात,आगम -निगम का ,
सरल-भाविक लिपि में,
कथा-शिल्पी,जिसके मर्मज्ञ,
जोड़ते चहुँ-दिश,भारत को ,
विश्व-जन को सर्वत्र,
"सहित"-भावस्थ है,हिन्दी वह....
कालजयी है,विश्व-एकता,
से बुद्ध- सम,सहज-ओजस्वी,
सहिष्णु,दायित्व-मर्यादित,
स्वाभिमान-सह-सम्मान के,
"बहुजन-हिताय","पारमार्थिक"
आत्मतत्वज्ञ है ,हिन्दी वह..
सविनय करती,अनुरोध,
अध्ययन करो,हर भाषा
को,स्वदेशी,विदेशी,
विस्मृत न करो,'अति निजम्'
विश्व-मैत्री-संगीत में.
अद्वैत- स्वानुभूति -स्वर है हिन्दी..........