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Meera Mishra

Action

4  

Meera Mishra

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प्रतीक्षा में कर्मयोग

प्रतीक्षा में कर्मयोग

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प्रतीक्षा ही नियति है, इंतजार है,

निजस्व का सतत्, जो

है, व्यक्ति की अस्मिता...हम...


' है', ' हूं' - जो, सहज है,

 करते उसे,

अनदेखा, होते असहज....

कुछ होने, कुछ बनने की,

प्रतीक्षा में...


काव्य कार की प्रतीक्षा, संवेदना की,

विज्ञानी शोथ- विचार- तथ्य की,

प्रिय की प्रतीक्षा ,प्रेयसी- मिलन की,


सब करते प्रतीक्षा, 'कब', 'कैसे' , 

सामान्य, से विशिष्ट में हो, परिणति.....


छात्र साफल्य के परम क्षण के लिए

संघर्षरत सदा... ज्ञानार्थी, परम ज्ञान

अमूल्य अनुभूति हेतु....


गीता संगीत है, कर्मयोगी के कर्म की,

फलाकांक्षा- रहित,' मैं हूं' की सहज

समझ है, भासित, उसमें, हर क्षण...,,


उत्तम, प्रतीक्षा वह जीवन- समर की..

मनस्वी हों, हम ' मैं हूं' में कर्म तत्पर,

'होना' 'बनना' मानें, अहंयुक्ल विचलन,


 भग्न होता जिससे, सहज कर्म-संतुलन,

 प्रेरित, लक्ष्य परक, जीवनामृत, जो

वर्तमान का श्रेयस् रोमांस (भाव) है।


क्यों प्रतीक्षा करें,अनागत, अज्ञात की,

' मैं' का वर्तमान जब होता, बोधगम्य।



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