प्रतीक्षा में कर्मयोग
प्रतीक्षा में कर्मयोग
प्रतीक्षा ही नियति है, इंतजार है,
निजस्व का सतत्, जो
है, व्यक्ति की अस्मिता...हम...
' है' , ' हूं' - जो, सहज है,
करते उसे,
अनदेखा, होते असहज....
कुछ होने, कुछ बनने की,
प्रतीक्षा में...
काव्य कार की प्रतीक्षा, संवेदना की,
विज्ञानी शोध - विचार- तथ्य की,
प्रिय की प्रतीक्षा, प्रेयसी- मिलन की,
सब करते प्रतीक्षा, 'कब', 'कैसे' ,
सामान्य, से विशिष्ट में हो, परिणति.....
छात्र साफल्य के परम क्षण के लिए
संघर्षरत सदा... ज्ञानार्थी, परम ज्ञान
अमूल्य अनुभूति हेतु....
गीता संगीत है, कर्मयोगी के कर्म की,
फलाकांक्षा- रहित,' मैं हूं' की सहज
समझ है, भासित, उसमें, हर क्षण...,,
उत्तम, प्रतीक्षा वह जीवन- समर की..
मनस्वी हों, हम ' मैं हूं' में कर्म तत्पर,
'होना' 'बनना' मानें, अहंयुक्ल विचलन,
भग्न होता जिससे, सहज कर्म-संतुलन,
प्रेरित, लक्ष्य परक, जीवनामृत, जो
वर्तमान का श्रेयस् रोमांस (भाव) है.
क्यों प्रतीक्षा करें, अनागत, अज्ञात की,
' मैं' का वर्तमान जब होता, बोधगम्य,