कुसुम-तितली-मिलन,प्रेम
कुसुम-तितली-मिलन,प्रेम
कोमल-प्रेमल कवि-भाव,मेरा
कहे, तितली है,ईश-उद्यान
की, नन्ही परी-देवांगना-सी,
जीवंत,कला प्रकृति की,सुहानी,
सुबह-शामों में,उत्सुक दृष्टि दे,
बढ़ा कौतूहल, विज्ञान-गणित,
का,काव्य-संगीत-संग,ऩन्हे,चंद्र-
चंचल राहियों को,देता....
शुद्ध-देशी परिवेश,पहचान,स्नेह-
मेल, स्व-ग्राम- संस्कृति का...
जानता,ऩन्हा अब,बाल-सखी,
क्यों अदृश्य, तकनीक-निर्मित,
महानगर-उद्यान से,बालकनी-
पादप- धन-लतिका देख,
कुसुम-प्रेयसि बिन-प्रेमी,
लेती, अज्ञातवास,उदास,
स्व-अस्मिता खोज में....
प्राकृतिक पूंजी का साझा स्रोत,
अब संरक्षित-क्षेत्र में,बनवासी,
दास, उपभोक्ता- संस्कृति का.