सफर अपना-अपना
सफर अपना-अपना
क्यों किसी को रोकना
काहे को है टोकना
सबका है कोई सपना
पर सफर अपना-अपना
ना कोई कुछ सुनने वाला
सबका अपना बोल-बाला
है जो दिखता श्वेत बिल्कुल
वो भी अंदर से है काला
बच सको तो बच के रहना
हो कटु पर सच ही कहना
थोड़ी सी हिम्मत जुटा कर
मुस्किलो को डट के सहना
टूटे हुए को जोड देना
फिर भी ना माने, छोड़ देना
होनी का नाम लेकर फिर
नियति की चादर ओढ़ लेना
सब का अपना जीवन है
और सबकी अपनी मंजिल
सब के अपने दरिया है
और सबके अपने साहिल
लेकर के पतवार हाथ मे
बेशक ना हो कोई साथ मे
बांट देखकर तारे गिन गिन
बेड़ा कर तैयार एक दिन
लहरों के बीच झोंकना है
पीड़ा को खुद में सोखना है
तैयार हो तो ही रण करना
बेवजह ना यूंही भौंकना है
अमृत को पाने में कई बार
विष भी पड़ जाता है चखना
चयन करो तो सही से चुनना
सफर है भईया अपना अपना...
