मेरा दुश्मन
मेरा दुश्मन
मैं का संकट बड़ा विकट
इसे चकनाचूर करूं कैसे
मैं के अंदर मैं फंसा पड़ा
इस मैं को दूर करूं कैसे
ये मैं मेरा अभिमान नहीं
कोई और ही अंदर बैठा है
कहां मेरी भी कुछ सुनता है
रहता हरदम ही ऐंठा है
मेरी सब बाते सुन मुझसे
फिर मुझको ही भड़काता है
मुझसे ही करवाकर सबकुछ
फिर मुझको ही फंसवाता है
ज़ालिम और काफिर है वो
या झूठा और शातिर मैं हूं
इन दोनो में ही नहीं था मैं
या दोनो में आखिर मैं हूं
वैसे मैं सच्ची अगर कहूं
मैं जीत कभी ना पाऊंगा
मेरा दुश्मन खुद ही मैं हूं
मैं उसको कहा हराऊंगा
अंधियारा मुझमें है घना
फिर खुद में नूर भरूं कैसे
मैं के अंदर मैं फंसा पड़ा
इस मैं को दूर करूं कैसे
इसे चकनाचूर करूं कैसे....
